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[2023] ICT टेस्ट क्यों किया है और क्या है Anti-D इंजेक्शन का उपयोग | ICT Test In Pregnancy In Hindi

आईसीटी परीक्षण (ICT Test) क्या है | ICT Test In Pregnancy In Hindi | ICT Test In Hindi | गर्भावस्था के दौरान आईसीटी परीक्षण | िक्ट टेस्ट इन प्रेगनेंसी | ICT Test In Pregnancy Means | ICT DCT Blood Test In Hindi | Anti D Injection Uses in Hindi

इस लेख में हम जानेंगे कि आईसीटी परीक्षण (ICT Test) क्या है, गर्भावस्था के दौरान आईसीटी परीक्षण क्यों किया जाता है (ICT Test In Pregnancy In Hindi) और गर्भावस्था में ICT Blood Test कब व कैसे किया जाता है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं।

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गर्भवस्था में ICT ब्लड टेस्ट क्यों किया जाता है
ICT Test in Pregnancy
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ICT रक्त जांच, कुम्ब्स टेस्ट (Coombs Test) का एक प्रकार है, जो प्राय: किसी व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर खून चढ़ाने (Blood Transfusion) से पहले या नेगेटिव ब्लड ग्रूप वाली गर्भवती महिलाओं में किया जाता है। आइए हम आईसीटी टेस्ट (ICT Test) की जानकारी विस्तार से जानते हैं।

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ICT Full Form In Medical Test In Hindi | ICT Test Kya Hota Hai | ICT Full Form In Hindi

ICT Test Full Form: Indirect Coombs Test होता है, जिसे हिंदी में इंडायरेक्ट कुम्ब्स टेस्ट या अप्रत्यक्ष कुम्ब्स परीक्षण कहते हैं।

वास्तव में आईसीटी परीक्षण (ICT Test) मानव शरीर में रक्त के कुम्ब्स परीक्षण (Coombs Test) का एक प्रकार है, जिसके द्वारा व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) के विरोध में बनने वाली एंटीबॉडीज की उपस्थिति या अनुपस्थित की जांच की जाती है।

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कुम्ब्स परीक्षण (Coombs Test) क्या है | What is Coombs Test In Hindi

Coombs Test एक प्रकार की रक्त जांच की प्रक्रिया है, जिसे एंटीग्लोबुलिन परीक्षण (Antiglobulin Test – AGT) भी कहते हैं। कुम्ब्स परीक्षण के द्वारा मानव शरीर में उन एंटीबॉडिज की पहचान की जाती है, जो लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) के विरोध में बनती हैं, क्योंकि ये एंटीबॉडिज लाल रक्त कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त या नष्ट करते हैं।

इन लाल रक्त कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है और व्यक्ति हेमोलिटिक एनीमिया (Hemolytic Anemia) का शिकार हो जाता है, जिससे ग्रसित व्यक्ति में प्राय: पीलिया रोग (Jaundice), बुखार और कमजोरी की शिकायत बनी रहती है।

Blood Sample Collection for ICT Test

Blood Sample Collection for ICT Test

प्रेगनेंसी में कूम्ब्स परीक्षण, एक रक्त परीक्षण की प्रक्रिया है, जिसके द्वारा नेगेटिव ब्लड ग्रूप वाली गर्भवती महिला के शरीर में उन एंटीबॉडिज की उपस्थिति का पता लगाया जाता है, जो पॉजिटिव रेड ब्लड सेल (RBC) के विरोध में बनती हैं।

गर्भवती महिला के शरीर में यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव होता है और गर्भ में पल रहे शिशु का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव होता है। Coombs Test दो प्रकार से किया जाता है, जिसे हम आगे जानेंगे

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Coombs टेस्ट कितने प्रकार का होता है | Types of Coombs Test In Hindi

Coombs टेस्ट दो प्रकार के होते हैं-
1. Indirect Coombs Test (ICT Test) अप्रत्यक्ष कूम्ब्स परीक्षण
2. Direct Coombs Test (DCT Test) प्रत्यक्ष कूम्ब्स परीक्षण

आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:

ICT Test In Pregnancy Means In Hindi | प्रेगनेंसी में आईसीटी जांच क्या है | ICT Test Kya Hota Hai | Indirect Coombs Test In Hindi

आईसीटी परीक्षण (ICT Test) को अप्रत्यक्ष कुम्ब्स परीक्षण (Indirect Coombs Test) कहते हैं, जिसे अप्रत्यक्ष एंटीग्लोबुलिन परीक्षण (Indirect Antiglobulin Test – IAT) के नाम से भी जाना जाता है। यह टेस्ट रोगी के खून में उन Rh Antibody का पता लगाने के लिए किया जाता है, जो रक्त में स्वतंत्र रूप से तैर रहे होते हैं। इसके लिए गर्भवती महिला के ब्लड सेंपल से सीरम लेकर आईसीटी परीक्षण (ICT Test) किया जाता है।

यदि गर्भवती महिला को रक्त आधान (Blood Transfusion) की आवश्यकता होती है, तो सबसे पहले गर्भवती महिला और रक्त दाता के खून की जांच की जाती है, जिससे रक्त आधान (Blood Transfusion) के बाद गर्भवती महिला या गर्भस्थ शिशु पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े।

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प्रेगनेंसी में आरएच नेगेटिव ब्लड ग्रुप | Rh Factor Negative In Pregnancy In Hindi

negative blood group of mother in hindi

मां का नेगेटिव ब्लड ग्रुप होने पर शिशु पर प्रभाव

जैसा कि हम जानते हैं कि ब्लड ग्रुप मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं, A, B, AB और O ब्लड ग्रुप। यदि ब्लड ग्रुप में Rh एंटीजन उपस्थित होता है, तो वह ब्लड ग्रुप पॉजिटिव अर्थात् Blood Rh Factor Positive होता है और यदि ब्लड ग्रुप में Rh एंटीजन उपस्थित नहीं होता है, तो वह ब्लड ग्रुप नेगेटिव अर्थात् Blood Rh Factor Negative होता है। इस प्रकार ये ब्लड ग्रुप 8 प्रकार के होते हैं, जो कि A+, A-, B+, B-, AB+, AB-, O+, O- हैं।

यदि गर्भवति महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और उसके पति (Husband) का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव होता है, तो गर्भ में पल रहे बच्चे का ब्लड ग्रुप या तो पॉजिटिव होगा या नेगेटिव। इसी प्रकार यदि मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है, तो बच्चे का ब्लड ग्रूप भी नेगेटिव ही होगा।

अब यदि यहाँ नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाली गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है, तो इससे कोई हानि वाली बात नही है, लेकिन यदि बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हुआ, तो यह बच्चे के लिए हानिकारक साबित होता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि गर्भ में पल रहा बच्चा, गर्भनाल (Placenta) के माध्यम से मां से जुड़ा होता है और इसी गर्भनाल के द्वारा ही मां से अपना पोषण प्राप्त करता है और इस प्रकार दोनों के ब्लड मिक्सिंग के सम्भावना बढ़ जाती है।

placenta in hindi

गर्भ में शिशु का माँ के प्लेसेंटा से जुड़ा होना

यदि मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है, और बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हुआ तो ऐसी स्थिति में गर्भनाल के माध्यम से या प्रसव के दौरान ब्लिडिंग होने पर, बच्चे का Rh पॉजिटिव एंटीजन मां के ब्लड में आ जाता है। अब इस स्थिति में मां की इम्युन सिस्टम एक्टिव हो जाती है और इस पॉजिटिव एंटीजन के विरोध में एंटीबॉडी का निर्माण करती है। यह एंटीबॉडी, पॉजिटिव Rh एंटीजन रेड ब्लड सेल को नष्ट करना या तोड़ना प्रारम्भ कर देती है।

इस स्थिति में मां के शरीर में उत्पन्न हई यह एंटीबॉडी वापस गर्भनाल के माध्यम से गर्भस्थ शिशु के शरीर में पहुँचकर, शिशु के खून में मौजूद Red Blood Cell (RBC) को नष्ट करने लगती है, जिससे शिशु को पीलिया रोग (Jaundice), खून की कमी (Anemia) और गंभीर स्थिति में Hydrops (जलोदर रोग – शरीर में पानी भर जाना) भी हो जाता है, जिससे शिशु के हृदय पर दबाव बढ़ता जाता है, जो कि शिशु के लिए बहुत घातक है और इससे शिशु की मृत्यु भी हो जाती है।

यदि शिशु का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है और वह नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाली मां का पहला बच्चा है, तो इस स्थिति में बच्चे को अधिक खतरा नहीं होता है, लेकिन पहले प्रसव (Delivery) के समय जब एक बार मां के शरीर में पॉजिटिव Rh एंटीजन ब्लड ग्रुप के विरोध में, मां के शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण हो जाता है, तो यह जीवन पर्यन्त बना रहता है। इस प्रकार आगे आने वाली पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाली संतान के लिए यह एंटीबॉडी अधिक घातक व असुरक्षित होता है।

यदि शिशु को पीलिया हो जाता है, तो शिशु की फोटो थेरेपी (Photo Therapy) की जाती है, इस प्रक्रिया में शिशु को नीले प्रकाश (Blue Light) में रखा जाता है और उसका निरीक्षण करते हुए उचित इलाज (Treatment) किया जाता है। यदि शिशु का खून बहुत कम है, तो उसे खून चढ़ाया जाता है अर्थात् रक्त-आधान (Blood Transfusion) किया जाता है।

प्रेगनेंसी में आईसीटी टेस्ट कब किया जाता है | ICT Blood Test During Pregnancy In Hindi

जैसा कि हम जानते है कि यदि गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और पति का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है, तो बच्चे का ब्लड ग्रुप भी पॉजिटिव हो सकता है, जो कि बच्चे के लिए घातक साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भ में शिशु, गर्भनाल (Placenta) के माध्यम से मां से जुड़ा होता है और मां से आवश्यक प्रोटीन व पोषण प्राप्त करता है।

ऐसे में मां व बच्चे का कुछ हद तक, ब्लड मिक्सिंग के फलस्वरूप बच्चे के रक्त का Rh Positive Antigen, मां के शरीर में पहुँच जाता है। इसके बाद मां के इम्युन सिस्टम द्वारा इस Rh पॉजिटिव एंटीजन के विरोध में एंटीबॉडी का निर्माण हो जाता है, जो इस Rh Antigen के रेड ब्लड सेल (RBC) को मारना शुरू कर देता है, जिससे मां का रक्त Rh Positive Antigen से प्रभावित ना हो।

इसके साथ ही यही एंटीबॉडी गर्भनाल के रास्ते गर्भ में पल रहे शिशु के खून को प्रभावित कर देता है और शिशु के रक्त के रेड ब्लड सेल (RBC) को नष्ट करने लगता है। इसके कारण शिशु में खून की कमी होने लगती है और आगे पीलिया, एनीमिया और हाईड्रॉप्स जैसे घातक बीमारी का रूप भी ले लेती है।

इसलिए मां के रक्त में पॉजिटिव Rh एंटीजन के विरोध में निर्मित एंटीबॉडीज के स्थिति का पता लगाने के लिए लगाने के लिए डॉक्टर द्वारा ICT Blood Test कराने की सलाह दी जाती है।

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ICT Test In Pregnancy Cost In Hindi | ICT Test In Pregnancy Price In Hindi

ICT Test Cost की बात करें तो यह अलग-अलग शहरों में अलग-अलग होती है। क्योंकि आईसीटी ब्लड टेस्ट (ICT Blood Test) एडवांस मेडिकल टेक्नोलॉजी और अत्यधिक कैलिब्रेटेड उपकरणों से युक्त पैथोलॉजी लैब सेंटर में किया जाता है, इसलिए  ICT Test Cost थोड़ी अधिक भी हो सकती है।

इस टेस्ट को कराने में औसतन खर्चा (Average Price), 200 रूपये से लेकर अधिकतम 1500 रूपये तक होता है। जानिए, वभिन्न शहरों में Coombs Test Cost क्या है?

ICT Test In Pregnancy Negative In Hindi | आईसीटी टेस्ट नेगेटिव मीन्स

यदि यदि निगेटिव ब्लड ग्रूप वाली गर्भवती महिला का ICT Blood Test प्रेगनेंसी के शुरूवात में और गर्भ के 28 हफ्ते पर कराया जाता है, अब यदि हर बार ICT Test Report Negative आती है, तो यह एक बहुत अच्छी खबर है, क्योंकि इसका मतलब है कि माँ के शरीर में पॉजिटिव रेड ब्लड सेल के विरोध में कोई एंटीबॉडी नहीं बना है। इस स्थिति में गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को किसी तरह का कोई खतरा नही है।

ICT Test In Pregnancy Positive In Hindi | आईसीटी टेस्ट पॉजिटिव मीन्स

यदि ICT Test Positive आती है, तो यह मां व बच्चे के लिए कठीन समय होता है, क्योंकि इसका मतलब होता है कि मां के शरीर में पॉजिटिव Rh एंटीजन के विरोध में एंटीबॉडी उपस्थित है, तो इसके कारण प्रेगनेंसी के पहले बच्चे के लिए तो काई परेशानी वाली बात नहीं होगी, लेकिन भविष्य में अगले बच्चे के लिए यह घातक साबित हो सकता है।

इसलिए ICT Test पॉजिटिव आने पर डॉक्टर द्वारा गर्भवती महिला का निश्चित समय अन्तराल पर कई बार ICT Blood Test कराया जाता है, जिससे गर्भवती महिला के शरीर में पॉजिटिव रेड ब्लड सेल के विरोध में बन रहे एंटीबॉडी के स्तर को मापा जा सके।

यदि एंटीबॉडीज के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है, तो यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए घातक साबित होता है, क्योंकि ये एंटीबॉडीज गर्भ में पल रहे बच्चे के शरी में पहुंचकर उसके पॉजिटिव रेड ब्लड सेल को नष्ट करने लगते हैं, जो कि शिशु के लिए बहुत घातक है।

आईसीटी ब्लड जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर घबराने की आवश्यकता नहीं है, इस स्थिति में आप योग्य गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर के अनुसार जरूरी चेकअप व ट्रीटमेंट लें और इसमें जरा भी लापरवाही ना करें।  सही समय पर उचित इलाज से बच्चे को सुरक्षित किया जा सकता है।

Direct Coombs Test In Pregnancy In Hindi | प्रेगनेंसी में DCT Test क्या है | Direct Coombs Test In Hindi

DCT Test को प्रत्यक्ष कुम्ब्स परीक्षण (Direct Coombs Test) भी कहते हैं, इसके अलावा इसे प्रत्यक्ष एंटीग्लोबुलिन परीक्षण (DAT) भी कहते हैं। DCT Test द्वारा शरीर में उन एंटीबॉडीज का पता लगाया जाता है, जो लाल रक्त कोशिकओं की सतह से चिपके हुए होते हैं। ये एंटीबॉडीज कभी-कभी शरीर में लाल रक्त कोशिका (RBC) को नुकसान पहंचाते हैं, जिससे व्यक्ति में खून की कमी हो जाती है।

इसी प्रकार गर्भावस्था में ये एंटीबॉडीज, गर्भ में पल रहे शिशु के रक्त से संपर्क करके, उसमें लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, जिससे बच्चे में खून की कमी हो जाती है या एनीमिक हो जाता है।

जैसा कि हम जानते हैं कि ब्लड ग्रुप मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं, A, B, AB और O ब्लड ग्रुप। यदि ब्लड ग्रुप में Rh एंटीजन उपस्थित होता है, तो वह ब्लड ग्रुप पॉजिटिव अर्थात् Blood Rh Factor Positive होता है और यदि ब्लड ग्रुप में Rh एंटीजन उपस्थित नहीं होता है, तो वह ब्लड ग्रुप नेगेटिव अर्थात् Blood Rh Factor Negative होता है। इस प्रकार ये ब्लड ग्रुप 8 प्रकार के होते हैं, जो कि A+, A-, B+, B-, AB+, AB-, O+, O- हैं।

यदि गर्भवति महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और उसके पति (Husband) का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव होता है, तो गर्भ में पल रहे बच्चे का ब्लड ग्रुप या तो पॉजिटिव होगा या नेगेटिव। इसी प्रकार यदि मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है, तो बच्चे का ब्लड ग्रूप भी नेगेटिव ही होगा।

प्रेगनेंसी में एंटी डी इंजेक्शन क्यों दी जाती है | एंटी डी इंजेक्शन कब लगता है | Anti-D Injection Uses in Hindi

Anti-D इंजेक्शन कब और क्यों लगाया जाता है

जैसा कि आप जान चुके हैं, कि नेगेटिव ब्लड ग्रुप वाली मां के बच्चे का नेगेटिव ब्लड ग्रुप होने पर तो काई परेशानी की बात नही है, लेकिन यदि बच्चा पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाला है, तो मां के शरीर में पॉजिटिव ब्लड Rh एंटीजन विरोधी एक एंटीबॉडी तैयार होता है।

यह एंटीबॉडी गर्भनाल के माध्यम से शिशु के शरीर में पहुंचकर उसके रेड ब्लड सेल (RBC) को नष्ट करने लगता है, तो ऐसे में बच्चे में खून की कमी, पीलिया, एनेमिया या सिर में पानी भर जाना और हाईड्रॉप्सपूरे शरीर में पानी भरने का खतरा बढ़ जाता है। इसे हेमोलिटिक डीसीज ऑफ दी न्यूबोर्न (Hemolytic Disease of the Newborn) भी कहते हैं।

मां के शरीर में, गर्भस्थ शिशु के लिए इस खतरे को समय रहते दूर करने के लिए, गायनेकोलॉजिस्ट द्वारा मां के पहले प्रेगनेंसी के दौरान ही एंटी-डी इंजेक्शन (Anti-D Injection) दी जाती है। निगेटिव ब्लड ग्रुप वाली गर्भवती महिला को उसके पहली प्रगनेंसी के दौरान ही एंटी डी इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे कि भविष्य में मां के शरीर में शिशु के पॉजिटिव रेड ब्लड सेल के विरोध में एंटीबॉडी का निर्माण (Antibody Formation) ना हो सके।

एंटी डी इंजेक्शन कब लगता है | प्रेगनेंसी में एंटी डी इंजेक्शन कब लगाना चाहिए

यदि किसी महिला का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और पति का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है, तो बच्चे की सुरक्षा के लिए, महिला के गर्भावस्था के दौरान निम्न समय-अन्तराल पर Anti-D Injection दी जाती है।

  • यदि प्रेगनेंसी के दौरान कभी भी गर्भवती महिला को रक्तस्राव (Bleeding) होती है, तो उस महिला को एंटी डी इंजेक्शन (Anti-D Injection) लगता है। इस दौरान यदि गर्भावस्था तीन महिने से कम है, तो 150 यूनिट और यदि गर्भावस्था का समय तीन महिने से अधिक है, तो उस स्थिति में 300 यूनिट का एक एंटी-डी इंजेक्शन लगता है, क्योंकि ब्लीडिंग के कारण मां व बच्चे का ब्लड मिक्सिंग की सम्भावना अधिक होती है।
  • इसके बाद प्रेगनेंसी के 28 हफ्ते लगभग अर्थात् 7 वें महिने में एक बार फिर 300 Unit का Anti D Injection लगाया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि 7 वें महिने तक मां व बच्चे के बीच ब्लड मिक्सिंग (Blood Mixing), कुछ मात्रा में हो ही जाती है। बच्चे के गर्भ में होने से उसके ब्लड ग्रुप की ठीक-ठीक जानकारी नहीं होती है, इसलिए बच्चे का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव मानकर, एंटी डी इंजेक्शन को लगाया जाता है, जिससे यदि मां के शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण हो भी रहा हो, तो उसे बच्चे तक पहुँचने से रोका जा सके।
  • यदि मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और पिता का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है, तो पहली प्रेगनेंसी के प्रसव (Delivery) के तुरन्त बाद, तीन दिन (72 घंटे) के बीच में ही मां को एक बार फिर 300 यूनिट का एंटी-डी इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे यदि माता-पिता भविष्य में बच्चे चाहते हैं, तो उनका बच्चा सुरक्षित हो सके।

हमारा यह प्रयास है, कि आपको सही व सटीक जानकारी प्राप्त हो, क्योंकि जागरूकता और समय पर इलाज से ही बीमारी से बचाव सम्भव है। यदि आपका ब्लड ग्रुप नेगेटिव है और आपके पति (Husband) का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव है, तो प्रेगनेंसी प्लानिंग करने से पहले या घर पर प्रेगनेंसी टेस्ट किट से प्रेगनेंसी की जांच करने पर, यदि आपकी प्रेगनेंसी कन्फर्म होती है, तो तुरन्त अपने गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर से जरूर मिलें।

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