प्रेगनेंसी में HPLC Test क्या है | HPLC Test In Pregnancy In Hindi
HPLC TEST IN PREGNANCY In Hindi | एचपीएलसी टेस्ट क्या है | HPLC Test In Hindi | Hb HPLC Test In Hindi | H P L C Test In Hindi
इस लेख में हम जानेंगे कि प्रगनेंसी में एचपीएलसी टेस्ट क्या है (HPLC Test In Pregnancy In Hindi), किन लोगों को HPLC Test कराना पड़ता है, थैलेसीमिया बीमारी (Thalassemia) शिशु के लिए घातक क्यों है, यह कितने प्रकार का होती है और इसके लक्षण, कारण व बचाव की पूरी जानकारी हम विस्तार से जानेंगें।
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एचपीएलसी क्या है | HPLC Test Full Form In Hindi | हप्लस टेस्ट फुल फॉर्म
एचपीएलसी जांच (HPLC Test) का Full Form: “High Performance Liquid Chromatography Test” होता है, जिसे हिंदी में “उच्च प्रदर्शन तरल क्रोमैटोग्राफी टेस्ट” कहा जाता है। यह एक ब्लड टेस्ट होता है, जिसकी सहायता से व्यक्ति में थैलेसीमिया (Thalassemia) और सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia) जैसी घातक बीमारी की स्थिति की जांच की जाती है।
What Is HPLC Test In Pregnancy In Hindi | HPLC Blood Test Kya Hota Hai
एचपीएलसी ब्लड टेस्ट से यह पता चलता है कि व्यक्ति थैलेसीमिया अथवा सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित तो नहीं है और यदि कोई व्यक्ति इन बीमारियों से ग्रसित है, तो इसका उसके स्वास्थ्य या आने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव या जोखिम हो सकता है। इस प्रकार इस टेस्ट से इन बीमारियों की गंभीरता (Severity of Illness) का भी पता लगाया जाता है।
थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया दोनों ही अलग-अलग आनुवांशिक (Genetics) रक्त की बीमारी होती हैं, जो माता-पिता से बच्चों में भी पहुंच जाती है। इन दोनों ही बीमारी में व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है, जो आगे चलकर गंभीर हो जाती है।
इसलिए यदि प्रेगनेंसी (Pregnancy) के दौरान या पहले भी महिला शरीर में खून की कमी पाई गई है, तो डॉक्टर की तरफ से थैलेसीमिया या फिर सिकल सेल एनीमिया की जाँच के लिए HPLC Test कराने की सलाह दी जाती है।
इस लेख में हम थैलेसीमिया बीमारी के बारे में जानेंगे। एचपीएलसी (HPLC), व्यक्ति के रक्त जांच (Blood Test) की एक ऐसी सरल प्रक्रिया है, जिसमें थैलेसीमिया की जांच के लिए, व्यक्ति के रक्त में Hemoglobin A2 (Hb A2) को मापा जाता है।
थैलेसीमिया (Thalassemia) प्राय: व्यक्ति के लिए घातक साबित होती है, क्योंकि इससे ग्रसित होने पर हमेशा खून (Blood) की कमी बनी रहती है, जिसे एनीमिया भी कहते हैं और इसके कारण उसे अन्य कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। थैलेसीमिया बीमारी की गंभीरता के आधार पर इसे तीन वर्गों में विभाजित किया गया है, जिसके बारे में हम आगे विस्तार से जानेंगे।
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थैलेसीमिया टेस्ट रिपोर्ट कैसे जांचे | HPLC Test in Pregnancy Normal Range in Hindi
यदि किसी व्यक्ति का HPLC Blood Test होता है, तो उसके रिपोर्ट का निम्न प्रकार जाँच करेंगे-
- यदि एचपीएलसी टेस्ट रिजल्ट में ‘Hb A2‘ कम से कम 3.8 होता है, तो इसका मतलब होता है कि वह व्यक्ति थैलेसीमिया माइनर (Thalassemia Minor) नहीं है।
- यदि HPLC Test Result में Hb A2 का मान 3.8 से अधिक होता है, तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति थैलेसीमिया माइनर से पीड़ित है।
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थैलेसीमिया बीमारी (Thalassemia) क्या है | What is Thalassemia In Hindi
मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर (MOHFW) ने सन् 2018 में एक आकड़ा जारी किया था, जिसके अनुसार भारत में हर साल लगभग 10 से 15 हजार बच्चे Thalassemia की गंभीर बीमारी, थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major) के लक्षणों के साथ जन्म लेते हैं, जो कि विश्व में सबसे अधिक है।
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक (Genetic) बीमारी है, जो मनुष्य के शरीर में रक्त (Blood) को प्रभावित कर देता है, जिसके कारण मनुष्य शरीर में खून की कमी हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे जा सकती है।
आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में, उसके शरीर के वजन का 7% रक्त (Blood) होता है जो औसतन 4.7 लीटर से 5.5 लीटर होता है।थैलेसीमिया से ग्रसित व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण लाल रूधिर कणिका (RBC) नहीं बन पाते हैं, जिससे व्यक्ति के शरीर में रक्त (Blood) की कमी हो जाती है।
थैलेसीमिया का सबसे घातक रूप थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major) है, जिसके कारण 25 से 30 वर्ष के व्यक्ति के शरीर में कई सारी समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं, जिसके कारण अंत में उसकी मृत्यु हो जाती है।
थैलेसीमिया एंड प्रेगनेंसी | Thalassemia Test In Pregnancy In Hindi
थैलेसीमिया माइनर से प्रभावित व्यक्तियों को थैलेसीमिया वाहक (Thalassemia Carrier) के रूप में पाया जाता है, क्योंकि उनमें जो जीन होते हैं वो दोषपूर्ण होते हैं और साथ ही उनमें थैलेसीमिया प्रमुख (Thalassemia Major) से ग्रसित बच्चों को जन्म देने की ज्यादा संभावना होती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं, नव-विवाहित जोड़ों को थैलेसीमिया माइनर की जाँच के लिए HPLC Test जरूर कराना चाहिए और इसके अलावा विवाह योग्य उम्र के युवक-युवती को थैलेसीमिया बीमारी के बारे में उचित जानकारी रखने के साथ डॉक्टर से प्रारम्भिक परामर्श भी जरूर लेना चाहिए।
यदि माता-पिता दोनों ही बीटा थैलेसीमिया पॉजिटिव पाये जाते हैं, तो इस स्थिति में उनमें केवल कुछ हीमोग्लोबिन की कमी होती है, लेकिन उनके जीवन पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन इसके कारण उनके होने वाले बच्चों में थैलेसीमिया मेजर बीमारी होने की अधिक सम्भावना रहती है, जो कि बच्चे के लिए बहुत घातक है। इसलिए ऐसी स्थिति में गर्भावस्था के दौरान, शुरूवाती तीन महिनों के अन्दर गर्भ में पल रहे शिशु का थैलेसीमिया जांच (Thalassemia Test) किया जाता है।
यदि गर्भ में पल रहा शिशु बीटा थैलेसीमिया पॉजिटिव पाया जाता है, तो इस स्थिति में अधिक चिंता की बात नही होती है, क्योंकि इसमें बच्चे को अधिक खतरा नहीं होता है। लेकिन इसके विपरीत यदि शिशु में थैलेसीमिय मेजर पाया जाता है, तो डॉक्टरों द्वारा अभिभावक को गर्भपात (Abortion) कराने की सलाह दी जाती है, क्योंकि थैलेसीमिया मेजर से ग्रसित बच्चे में पूरे जीवन खून की कमी बनी रहती है और उसे पूरी जिन्दगी, हर 1 से 2 महिने पर खून चढ़ाना पढ़ेगा।
थैलेसीमिया (Thalassemia) के प्रकार | Types of Thalassemia In Hindi
हीमोग्लोबिन दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘हीमो‘ जिसका अर्थ है आयरन और ‘ग्लोबिन‘ रक्त में मौजूद प्रोटीन होता है।
मानव शरीर के रक्त में ग्लोबिन के नाम से 4 प्रोटीन की चेन होती है, इसमें 2 अल्फा ग्लोबिन होती है और 2 बीटा ग्लोबिन होती है। इन प्रोटीन चेन में अल्फा ग्लोबिन की कमी के कारण, अल्फा थैलेसीमिया और बीटा ग्लोबिन की कमी के कारण बीटा थैलेसीमिया की बीमारी हो जाती है।
अल्फा थैलेसीमिया (Alpha Thalassemia) क्या है | Alpha Thalassemia In Hindi
जब किसी व्यक्ति के शरीर में अल्फा ग्लोबिन नामक प्रोटीन नहीं बनता है, तो ऐसी स्थिति में होने वाले थैलेसीमिया रोग को अल्फा थैलेसीमिया (Alpha Thalassemia) कहते हैं। शरीर में अल्फा ग्लोबिन बनने के लिए, प्रत्येक माता-पिता से दो जीन अर्थात् कुल चार जीन आवश्यक होते हैं।
यदि शरीर में इनमें से एक या दो जीन अनुपस्थित होते हैं, तो इस स्थिति में ‘अल्फा थैलेसीमिया माइनर‘ होता है। यदि शरीर में इनमें से तीन जीन अनुपस्थित होते हैं, तो ऐसी स्थिति में ‘हीमोग्लोबिन H‘ नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार यदि शरीर में सभी चार जीन अनुपस्थित हों, तो ऐसी स्थिति में ‘हाइड्रॉप्स भ्रूण‘ बनता है, जो कि अत्यन्त गंभीर स्थित है क्योंकि इसमें जीवन रक्षा अत्यन्त दुर्लभ है।
बीटा थैलेसीमिया (Beta Thalassemia) क्या है | Beta Thalassemia In Hindi
जब किसी व्यक्ति के शरीर में बीटा ग्लोबिन नामक प्रोटीन नहीं बनता है, तो ऐसी स्थिति में होने वाले थैलेसीमिया रोग को बीटा थैलेसीमिया (Beta Thalassemia) कहते हैं। शरीर में बीटा ग्लोबिन बनने के लिए, प्रेत्येक माता-पिता से एक जीन अर्थात् कुल दो जीन आवश्यक होते हैं। शरीर में इनमें से एक जीन की अनुपस्थिति से थैलेसीमिया माइनर (Thalassemia Minor) और दोनों जीन की अनुपस्थिति से बीटा थैलेसीमिया (Beta Thalassemia) हो जाता है, जो कि एक गंभीर बीमारी है।
बीमारी की गंभीरता के अनुसार थैलेसीमिया (Thalassemia) का वर्गीकरण | Classification of Thalassemia In Hindi
बीमारी की गंभीरता के अनुसार थैलेसीमिया मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है-
1. थैलेसीमिया माइनर (Thalassemia Minor)
2. थैलेसीमिया इंटरमिडिएट (Thalassemia Intermediate)
3. थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major)
आइए अब हम इनके बारे में विस्तार से समझते हैं-
थैलेसीमिया माइनर बीमारी क्या होती है | What is Thalassemia Minor In Hindi
जैसा कि आपने जाना कि थैलेसीमियी एक आनुवांशिकी बीमारी है, इसलिए यह बच्चों में तभी पाया जाता है, जब माता-पिता में इस बीमारी के लक्षण रहे हों। यदि माता-पिता में से किसी एक को भी थैलेसीमिया माइनर (Thalassemia Minor) के लक्षण होते हैं, तो उनके बच्चे को भी थैलेसीमिया माइनर की बीमारी हो सकती है। यह थैलिसीमिया की हल्की स्थिति होती है।
Thalassemia Minor की जांच | HPLC Test In Thalassemia Minor In Hindi
थैलेसीमिया माइनर, थैलेसीमिया रोग का शुरूवाती स्टेज होता है, जिससे प्रभावित व्यक्ति में आमतौर पर हल्का या लक्षणहीन एनीमिया देखा जा सकता है। इससे ग्रसित व्यक्ति में एक बार से अधिक पीलिया (Jaundice) हो सकता है। थैलेसीमिया माइनर बीमारी का पता आसानी से नही चल पाता है, इसलिए इस बीमारी का पता लगाने के लिए रोगी का HPLC (High-performance liquid chromatography) का टेस्ट कराना बहुत जरूरी हो जाता है।
थैलेसीमिया इंटरमिडिएट (Thalassemia Intermediate) क्या है | What is Thalassemia Intermediate In Hindi
थैलेसीमिया माइनर और थैलेसीमिया मेजर के बीच का स्टेज थैलेसीमिया इंटरमीडिएट होता है। इससे प्रभावित व्यक्ति में भी खून की कमी हो जाती है और इसके लक्षण बच्चों में लगभग 4 से 5 वर्ष के मध्य पता चलने लगता है। थैलेसीमिया इंटरमीडिएट से पी़ड़ित बच्चे को हर 3 से 4 महिने पर खून चढ़ाने (Blood Transfusion) की आवश्यकता पड़ती है।
थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major) क्या है | What is Thalassemia Major In Hindi
थैलेसीमिया मेजर की बीमारी अत्यधिक गंभीर होती है। यदि माता-पिता दोनों ही व्यक्ति को थैलेसीमिया माइनर की बीमारी हो, तो उनके बच्चे में थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major) होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
इसलिए जिन राज्यों में थैलेसीमिया से पीड़ित मरीज ज्यादा पाये जाते हैं, वहाँ विवाह से पहले ही वर-वधू का थैलेसीमिया जाँच के लिए ब्लड HPLC Test कराने की सलाह दी जाती है।
यदि किसी दंपत्ति ने विवाह से पूर्व थैलेसीमिया टेस्ट नहीं कराया है और उन्हें अपने थैलेसीमिया माइनर होने का अंदाजा हो, तो उन्हें प्रेगनेंसी के 10वें से 12वें सप्ताह के मध्य म्यूटेशन टेस्ट जरूर कराना चाहिए और यदि टेस्ट के दौरान थैलेसीमिया के लक्षण पाए जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टरों द्वारा गर्भपात (Abortion) कराने का ही परामर्श दिया जाता है। इस प्रकार का गर्भपात कानूनन सही भी माना गया है।
थैलेसीमिया मेजर (Thalassemia Major) के लक्षण, बच्चे के जन्म से 5 से 6 महिने में दिखाई देने लगते हैं और इस स्थिति में उस बच्चे को महिने में एक बार खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
थैलेसीमिया बीमारी होने का क्या कारण हैं? | Causes of Thalassemia In Hindi
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है। यदि माता-पिता में से किसी एक को भी थैलेसीमिया के लक्षण रहे हों, तो यह उनके बच्चे को भी हो सकता है। इसी प्रकार यदि माता-पिता दोनों को ही थैलेसीमिया के लक्षण हैं, तो उनके 4 बच्चों में से 1 को थैलेसीमिया प्रमुख (Thalassemia Major) होने की संभावना रहती है। थैलेसीमिया कोई संक्रामक रोग नही है, यह केवल आनुवांशिक रोग है, जो माता-पिता लक्षण होने पर संतान को भी हो सकता है।
थैलेसीमिया के लक्षण कौन-कौन से है? | Symptoms of Thalassemia In Hindi
बीटा थैलेसीमिया में मुख्यत: खून की कमी या गंभीर एनीमिया हो जाती है। आमतैर पर थैलेसीमिया बीमारी के लक्षण जीवन के पहले 2 वर्षों में दिखाई देते हैं। इन लक्षणों में व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधित परेशानी हो सकती हैं, जैसे-
- गहरा मूत्र
- पीली त्वचा
- अस्थि विकृति (खासतौर पर चेहरे पर)
- अत्यधिक थकान
- तिल्ली व लीवर का बढ़ा होना
- भूख न लगना
- शारिरीक विकास में कमी
- हड्डी संबंधित समस्याएं
थैलेसीमिया टेस्ट (Thalassemia Test) किसे कराना चाहिए
थैलेसीमिया टेस्ट डॉक्टर के परामर्श के अनुसार निम्न लोगों को जरूर कराना चाहिए-
- नव विवाहित जोड़े जो प्रेगनेंसी प्लानिंग (Pregnancy Planning) कर रहे हों।
- विवाह से पूर्व युवक-युवती (जिनकी उम्र 18 से 25 के बीच हो)।
- गर्भधारण के पहले त्रैमासिक में गर्भवती महिलाओं को, जिन्हें खून की कमी या एनीमिया की शिकायत रहती हो।
- जहाँ प्राय: लोग थैलेसीमिया से पीड़ित रहते हों, उस क्षेत्र समुदाय के व्यक्ति को।
थैलेसीमिया से बचाव के उपाय क्या हैं
थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति को आयरन से युक्त खाद्य पदार्थों को कम से कम या बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को थैलेसीमिया है, तो उसे फॉलिक एसिड या आयरन की गोली नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना उसके लिए घातक साबित हो सकता है।
इसके अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांट की मदद से भी थैलेसीमिया से बचाव संभव है। वास्तव में इसके लिए बोन मैरो का मिलना आसान बात नहीं है, क्योंकि बोन मैरो जिस व्यक्ति का लिया जा रहा है, उस व्यक्ति के निरोग होने के साथ ही, ब्लड ग्रुप भी थैलेसीमिया रोगी के ब्लड ग्रुप से मिलना चाहिए और खून में सभी अवयव होने भी आवश्यक हैं। इसलिए थैलेसीमिया के अधिकतर केस में भाई-बहन के बोन मैरो का ही ट्रांसप्लांट किया जाता है।
थैलेसीमिया से बचाव के लिए जरूरी सावधानियाँ
यदि आप विवाह के बारे में सोच रहे हैं, तो थैलेसीमिया माइनर वाले व्यक्ति से विवाह करने से बचें।
यदि आपका विवाह हो गया हो, तो अपने साथी का भी थैलेसीमिया जाँच कराएं।
यदि पति व पत्नि में से कोई भी थैलेसीमिया माइनर नहीं है, तो आप निश्चिंत हो सकते हैं।
यदि पति-पत्नि दोनों को थैलेसीमिया के लक्षण हों, तो प्रेगनेंसी प्लानिंग से पहले आनुवांशिक परामर्श के लिए किसी योग्य डॉक्टर से जरूर मिलें।
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